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कमलनाथ सरकार कुर्सी बचाए या किसान

"रीवा जिले में भीषण ओला बृष्टि से फसलें हुई बर्बाद ,,



रीवा त्योथर के पश्चिमांचल क्षेत्र मे ओलावृष्टि और बेमौसम हुई बारिश से अन्नदाता कराह उठा  किसानों  की खड़ी रवी की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई कई दिनों से मौसम में हर पल हो रहा बदलाव आखिर  आफत बनकर किसानों के ऊपर ओला वृष्टि का कहर ढहा गया   रीवा जिले में  भारी ओलावृष्टि   ने ' अन्नदाताओं में तबाही मचा दिया लगभग 15 से 25 मिनट हुए बेमौसम ओलायुक्त बरसात के बाद का नजारा स्तब्ध करने वाला  था  खड़ी फसलों  के खेतों में चारों तरफ ओले की सफेद चादर बिछ गयी तेज हवा के साथ हुए बारिश और पत्थर गिरने से फसल पूरी तरह  नष्ट हो चुकी है गेहूं  व अन्य फसलों के केवल डंठल खेतो में खड़े दिखे  वही दलहन और तिलहन की फसल भी पूरी तरह नेस्तनाबूद हो चुकी है जिले के कई तहसीलों  मैं  मौसम का कहर मचा हुआ है पर वही पश्चिमाञ्चल क्षेत्र के बरहा ,कुंडी, पटहट,दमौती, सूती, सरुई, जमुनिहा  सहित अन्य कई गांवों के अन्नदाताओं की खड़ी फसलें बर्बाद हो गई है अन्नदाता किंकर्तव्यविमूढ़ हो घोर चिंता के अंधेरे में डूब चुका है  प्रकृति के रौद्र रूप का  कोपभाजन हुआ अन्नदाता चीख रहा है ऐसी स्थिति में किसानों     के सामने भारी संकट खड़ा  है,एक तरफ जहां किसानों के बेटियों के हाँथ पीले करने का सपना चकनाचूर हुआ वही दूसरी तरफ साल भर की गृहस्थी चलाने का जरिया भी  अब  कुछ नही बचा  



"सरकारी सहायता की शीघ्र दरकार,,



  बेमौसम हुई ओलों भरी अतिवर्षा  के रूप में हुए प्राकृतिक तांडव  से पीड़ित  सहमें किसानों के समक्ष आगामी वर्ष के लिए भोजन तक के लाले पड़ चुके हैं   ऐसी स्थिति में अन्नदाताओं को सरकारी इमदाद ही एक मात्र सहारा है इस इमदाद के लिए तबाही के मंजर में फंसा प्रत्येक पीड़ित किसान सरकार की तरफ आशाभरी निगाहों से देख रहा है किन्तु सरकार की ओर से पीड़ितों को  क्या मदद उपलब्ध कराई जाएगी  यह तो समय के गर्त में है  अन्नदाताओं की निगाहें प्रदेश सरकार की ओर टकटकी लगाकर देखने को बेशक मजबूर हो रही हैं किन्तु अब देखने वाली बात यह है कि सरकार कितनी शीघ्रता से  किसानों के नुकसानी का ईमानदारी से  सर्वे कराती है या फिर अन्नदाताओं से  प्रकृति की तरह ही सरकार  अपनी कुर्सी बचाने के  चक्कर में  पल्ला झाड़ लेती है 


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