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सियासत के गणित पर सबकी नजर, आखिर क्यों उलझन में हैं सरकार!

समझिए मध्यप्रदेश का सियासी गणित, यहां कांग्रेस के सामने खोया अस्तित्व पाने की तिलमिलाहट है तो भाजपा सत्ता के सिंहासन को बचाए रखना चाहती है...


✍दीपक गुप्ता क्राइम रिपोर्टर रीवा...✍


 



 


कहते हैं सत्ता के नाव की सवारी आसान नहीं होती। बीच मझधार जब लहरें तेज होती हैं तो नाव किनारे लगाना अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश की सियासत पिछले दो महीने से हिचकोले ले रही है। देखने में सबकुछ कभी सामान्य दिखता है, लेकिन हकीकत में सत्ता और विपक्ष दोनों ही अंतरद्वंद्व की स्थिति में हैं। कहीं मंत्रिमंडल में नए चेहरों को स्थान देने के लिए सूची फाइनल करते समय पसीने से तरबतर होना पड़ रहा है तो कहीं अपनों के व्यंग्यबाण अंदर की बातें सतह पर ला दे रहे हैं। अहम यह कि जो कल तक एक-दूसरे को कोसते नहीं थक रहे थे, वही एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं। कोरोना काल में मध्यप्रदेश में सियासी पारा हाई है। नतीजतन चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर कटाक्ष करने में पीछे नहीं हैं।


 


 


 


दरअसल, मध्यप्रदेश की सियासत में सभी की निगाह मंत्रिमंडल के विस्तार पर लगी हुई हैं। भाजपा के रणनीतिकारों के लिए मंत्री के रूप में चेहरों का चयन आसान नहीं है। कई बार कागजी कसरत करने और घंटों मंथन के बाद भी नाम तय नहीं हो पा रहे हैं। सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स और भाजपा के पुराने भरोसेमंद चेहरों के बीच एक नए तरह का द्वंद्व चल रहा है। केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि सिंधिया को किसी कीमत पर नाराज नहीं किया जाए तो स्थानीय नेतृत्व उन चेहरों पर भरोसा करना चाहता है जो विपक्ष में रहते हुए सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे। इसके अलावा अहम यह भी कि सिंधिया कोटे से अधिक संख्या में मंत्री बने तो भाजपा के पुराने चेहरे नाराज हो जाएंगे।


 


 


 


ऐसे समझें मंत्री पद का गणित


दरअसल, मध्यप्रदेश में नियमों के तहत अधिकतम 34 मंत्री हो सकते हैं। वर्तमान में पांच मंत्री कार्यरत हैं। ऐसे में स्थानीय नेतृत्व चाहता है कि नए विस्तार में 23 से 24 लोगों को शपथ दिला दी जाए। इसके बाद उपचुनाव में उतरा जाए। इसके दो फायदे होंगे अगर कोई नाराज होता है तो उसे समय रहते मंत्री पद से नवाजा जा सके। लेकिन दिक्कत यहां इस बात की है कि जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी तो उनके समर्थन में 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था। इसमें से छह कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे। इस गणित के हिसाब से पुराने मंत्रियों को स्थान देना और साथ ही अन्य की डिमांड पूरी करने के चक्कर में सारा सियासी गणित प्रभावित हो सकता है। अहम यह कि कांग्रेस से आए हरदीप सिंग डंग और बिसाहू लाल जैसे नेता पहले से ही मंत्री पद की आस लगाए बैठे हैं। वहीं बसपा की रामबाई भी कुछ इसी जुगत में हैं।


 


 


 


उपचुनाव से पहले खतरे से बचना चाहती है भाजपा


दरअसल, उप चुनाव से पहले भाजपा किसी भी डैमेज से बचना चाहती है। उसका प्रयास है कि सभी को साथ लेकर चला जाए, लेकिन जिस तरह की सियासी गलियारों में चर्चा है उसके हिसाब से पहली परीक्षा मंत्री मंडल विस्तार की होगी और उसके बाद कांग्रेस के बागियों को टिकट देने की होगी। ऐसे में देखना होगा कि भाजपा मंत्री मंडल विस्तार के लिए कौन सा तरीका अपनाती है।


 



 


इन सीटों पर होंगे उपचुनाव


मध्य प्रदेश के दो विधायकों के निधन और कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे से रिक्त हुई कुल 24 सीटों पर उपचुनाव होना हैं। इनमें जौरा, आगर (अजा), ग्वालियर, डबरा (अजा), बमोरी, सुरखी, सांची (अजा), सांवेर (अजा), सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह (अजा), मेहगांव, गोहद (अजा), ग्वालियर (पूर्व), भांडेर (अजा), करैरा (अजा), पोहरी, अशोक नगर (अजा), मुंगावली, अनूपपुर (अजजा), हाटपिपल्या, बदनावर, सुवासरा शामिल हैं। पहली बार प्रदेश में एक साथ 24 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं।


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