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स्थानीय छात्रों को ही नौकरी फैसला प्रशंसनीय, लेकिन पेच और पचड़ा भी*

मनीष गौतम रीवा 


फैसला प्रशंसनीय, लेकिन पेच और पचड़ा भी*


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने राज्य के युवाओं के हित में एक बड़ा फैसला लिया है जो काबिले  तारीफ है। लेकिन उसमें कई  पेंच और पचड़े भी हैं। मुख्यमंत्री ने सरकारी नौकरियों में सिर्फ प्रदेश के लोगों को रखने की बात कही है।  इसके लिये आवश्यक कानूनी प्रावधान किया जाएगा। निश्चित ही सराहनीय कदम। बेरोजगार युवाओं के हित में फैसला। फैसले से  प्रदेश की प्रतिभाओं का निश्चय ही उत्थान होगा। यह फैसला असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के दौरान लिया गया होता तो कितना अच्छा होता। मुख्यमंत्री की घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि अभी तक प्रावधान न होने से प्रदेश की नौकरी को बाहरी राज्यों के बच्चे बीन-बटोर लेते थे। किसी भी तरह की कोई रोक-टोक जो नहीं थी। लेकिन अब स्थिति कुछ अलग होगी। 
मुख्यमंत्री को अपनी इस घोषणा को अमल में लाने के लिये कई कानूनी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता है। अभी यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मध्यप्रदेश में रह रहे दूसरे राज्यों के लोगों का क्या होगा। यह सवाल इसलिये भी उठ रहा है क्योंकि तमिलनाडु, कर्नाटक,  केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना,  महाराष्ट्र, गुजरात,  पश्चिम बंगाल यहां तक कि छत्तीसगढ़ में अपनी स्वयं की राज्य की भाषा है। जहां नौकरी करने के लिए राज्य की स्थानीय भाषा की जानकारी होना अनिवार्य है। लेकिन मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और दिल्ली की अपनी राज्य की भाषा नहीं है। यही कारण है इन प्रदेशों में दूसरे राज्यों के युवा आसानी से नौकरी पा जाते हैं । अब मध्यप्रदेश में रह रहे बाहरी राज्यों के लोगों के लिये भी प्रावधान सुनिश्चित करना होगा। ऐसे में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की मांग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दिग्विजय सिंह ने कुछ दिनों पहले मांग की थी कि सरकारी नौकरी उन्हें ही दी जानी चाहिए,  जिन्होंने 10वीं की परीक्षा प्रदेश से पास की हो।
*राज्य के अधिकार में नहीं*


अब सवाल यह उठता है कि क्या राज्य सरकार के पास नौकरी आरक्षित करने का अधिकार है। मीडिया की खबरों के अनुसार सरकारों के ऐसे प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में पहुचे थे, जिसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है। राज्य सरकारें सरकारी नौकरियों के लिए तय शर्तों और मानदंडों में स्थाई निवासी को प्राथमिकता का कोई मानक बना सकते हैं। लेकिन शत प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी देने का प्रावधान तय नहीं कर सकती। 


एक समस्या यह भी
हमारे प्रदेश मे एक समस्या यह भी है कि यहा फर्जी कागजात खूब बनाए जाते है। चाहे, राशन कार्ड हो या फिर निवास प्रमाण पत्र। ऐसे मे सरकार को कड़े नियम बनाने होगे नही तो प्रदेश के युवाओ को रोजगार मिले या फिर न मिले लेकिन बिचौलियो के लिये एक और रोजगार का अवसर खुल जाएगा।
 *कहीं चुनावी लालीपाप तो नहीं*
हालांकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है,  लेकिन इसे चुनावी लालीपाप की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। बता दें कि प्रदेश की 27 विधानसभा में उप चुनाव होने हैं । नौकरी के लिये नए नियम कब बनेंगे यह निश्चित नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री की इस घोषणा को उपचुनाव में भुनाने से भाजपा पीछे नहीं रहेगी।
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